Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - अखबार - बालस्वरूप राही

अखबार / बालस्वरूप राही


जिस दिन होता है इतवार,
घर में आते ही अखबार,
ऐसी छीन-झपट मचती
हो जाते हैं हिस्से चार!
पापा को खबरों का चाव,
माँ पढ़ती दालों के भाव,
भैया खेलों में रमते,
भाता मुझे बनाना नाव,

   0
0 Comments